अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना : श्री मोरोपंत पिंगले

श्री मोरेश्वर नीलकंठ (मोरोपंत ) पिंगले

भारतीय-इतिहास, संस्कृति एवं राष्ट्रीयता के प्रमुख चिन्तक व कुशल संगठनकर्ता श्री मोरेश्वर नीळकण्ठ (मोरोपन्त) पिंगळे का जन्म दिनांक 30 अक्टूबर, 1919 को जबलपुर में एक साधारण परिवार में हुआ। सन् 1930 में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और संघ-संस्थापक डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार (1889-1940) का सान्निध्य उन्हें प्राप्त हुआ। श्री पिंगळेजी ने नागपुर के मारिस कालेज़ से अंग्रेज़ी में स्नातक की शिक्षा पूर्णकर 1941 में प्रचारक-जीवन की शुरूआत की। आरम्भ में वह खण्डवा (म॰प्र॰) में सह-विभाग प्रचारक बने। बाद में मध्यभारत के प्रांत-प्रचारक तथा 1946 में मात्र 26 वर्ष की आयु में महाराष्ट्र प्रान्त के सह-प्रान्त प्रचारक का दायित्व संभाला। तत्पश्चात् पश्चिम-क्षेत्र के क्षेत्र-प्रचारक, अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख, अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख, अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख, अखिल भारतीय व्यवस्था-प्रमुख और सह-सरकार्यवाह रहे। इस तरह जीवन के 65 वर्ष प्रचारक रहे। जीवन के अन्तिम कालखण्ड में वह संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के आमन्त्रित सदस्य रहे।

Moreshwar Neelkanth (Moropant) Pingle
संघ के प्रथम प्रचारक श्री उमाकान्त केशव (बाबा साहेब) आपटे ने इतिहास में सम्यक् दृष्टि एवं सत्यापन के लिए बड़ा कार्य किया। किन्तु उनके जीवनकाल में उनके विचारों को मूर्तरूप नहीं दिया जा सका।उनके देहान्त के बाद सन् 1973 में मा॰ मोरोपन्त पिंगळे जी की प्रेरणा से नागपुर में ‘बाबा साहेब आपटे स्मारक समिति’की स्थापना हुई। बाद में इसी समिति के अंतर्गत ‘अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना’का गठन किया गया था।

सन् 1974 में मोरोपन्त जी ने छत्रपति शिवाजी महाराज (1674-1680) के 300वें राज्याभिषेक के अवसर पर रायगढ़ में भव्य कार्यक्रम की योजना बनायी। आन्ध्रप्रदेश-स्थित डा॰ हेडगेवार जी के पैतृक गाँव कंदकूर्ति में उनके परिवार के कुलदेवता के मन्दिर को भव्य रूप दिया। नागपुर में ‘स्मृति-मन्दिर’के निर्माण में उनकी प्रमुख भूमिका थी। पारडी (गुजरात) के प्रख्यात वैदिक विद्वान् पं॰ श्रीपाद दामोदर सातवलेकर (1867-1968) के ‘स्वाध्याय मण्डल’के कार्य की पुर्नस्थापना की। महाराष्ट्र के वनवासी-क्षेत्र में उन्होंने विभिन्न सेवा-कार्य, जैसे- ‘देवबोध’ (ठाणे का सेवा-प्रकल्प), कलवा-स्थित कुष्ठ-रोग निर्मूलन-प्रकल्प इत्यादि प्रारम्भ किये। श्री मोरोपन्त जी ‘साप्ताहिक विवेक’ (मुम्बई) की विस्तार-योजना के जनक थे तथा ‘नारायण हरि पाळकर-स्मृति समिति’ (रुग्ण सेवा-प्रकल्प, मुम्बई) की प्रेरणा उन्होंने दी थी। गोरक्षा, गो-अनुसन्धान एवं वैदिक गणित के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा थी और इसके संवर्धन के लिए वह आजीवन प्रयत्नशील रहे। उन्होंने ‘लघु उद्योग भारती’की भी स्थापना की। सन् 1975-‘77 के आपातकाल के दौरान उन्होंने 19 महीने भूमिगत रहकर अनेक योजनाओं के द्वारा आन्दोलन को सशक्त बनाया। इस समय संघ के 6 अघोषित सरसंघचालकों में वह भी एक थे। सन् 1961 में मीनाक्षीपुरम् में सैकड़ों हिंदुओं के धर्मांतरण के पश्चात् उन्होंने सम्पूर्ण भारतवर्ष में संस्कृति-रक्षा अभियान छेड़ दिया। सन् 1983 में विश्व हिंदू परिषद् के तत्त्वावधान में उन्होंने ‘एकात्मता-यात्रा’प्रारम्भ की।

सन् 1983-’85 तक मोरोपन्त जी ने लुप्त वैदिक सरस्वती नदी के अनुसन्धान के लिए एक अभियान शुरू किया। उन्होंने हरियाणा में सरस्वती नदी के उद्गम-स्थल से चलते हुए राजस्थान, बहावलपुर तथा गुजरात की कच्छ की खाड़ी तक विद्वानों की टोली (पुरातत्त्ववेत्ता व इतिहासज्ञ) के साथ एक लम्बी शोधपरक यात्रा की। इस शोध-अभियान से यह सिद्ध हो गया कि सारस्वत सभ्यता की आधार सरस्वती नदी किन्हीं प्राकृतिक कारणों से विलुप्त हो गई थी। शोध में सरस्वती-सभ्यता के प्राचीन अवशेष मिले। तदन्तर योजना ने मोरोपन्त जी के निर्देशन में सरस्वती को स्थापित किया और भारतीय-इतिहास को एक नया आयाम दिया जिससे कपोल-कल्पित वैदेशिक मानसिकतावाले इतिहास को ध्वस्त करने सफलता मिली।

सन् 1985 ई. से श्रीरामजन्मभूमि-आन्दोलन के वह प्रमुख रणनीतिकार थे। श्रीरामशिलापूजन, शिलान्यास, रामज्योति आदि के वह मार्गदर्शक रहे। उन्हें महाराष्ट्र में ‘हिंदू जागरणाचा सरसेनानी’ (हिंदू-जनजागरण के सेनापति) की उपाधि से विभूषित किया गया था। दिनांक 21 सितम्बर, 2003 को नागपुर में श्री मोरोपन्त जी ने अन्तिम सांस ली।

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