अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना : मा. बाबा साहेब आप्टे
श्री उमाकान्त केशव (बाबा साहेब) आपटे
संस्कृत, मराठी, हिंदी एवं इतिहास के प्रकाण्ड विद्वान्, भारतीय-संस्कृति के मनीषी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रथम प्रचारक एवं उसके अखिल भारतीय प्रचारक-प्रमुख थे। वह एक मौलिक चिन्तक एवं विचारक थे। भारतीय जीवन-मूल्यों, आदर्शों एवं सांस्कृतिक विशिष्टताओं के वह जीवन्त प्रतीक थे। वेद, पुराणों, रामायण, महाभारतादि भारतीय&इतिहास के वह गम्भीर अध्येता थे। उनकी मान्यता थी कि जबतक हम अपने स्वत्व को नहीं समझेंगे, तबतक इतिहास-बोध और राष्ट्र-बोध से वंचित रहेंगे।उनकी यह भी धारणा थी कि जबतक विदेशियों द्वारा विकृत इतिहास का समूलोच्छेदकर सही इतिहास का लेखन प्रारम्भ नहीं होता, तबतक राष्ट्रीय अस्मिता को सदा ख़तरा बना रहेगा। इसलिए उनकी तीव्र अभिलाषा थी कि आदिकाल से लेकर वर्तमान तक का देश का सच्चा इतिहास लिखा जाए जिससे भारत की गौरवशाली परम्परा और जीवन का वास्तविक परिचय हो सके और विलुप्त सही तथ्य खोजे जाएँ।
अतएव उन्होने संघ-कार्य के लिए देश के अपने लगभग 42-वर्षीय सतत और विस्तृत प्रवास में विदेशियों द्वारा विकृत किए गए भारतीय-इतिहास को शुद्धकर उसका पुनर्लेखन करने के लिए इतिहास के अनेक विद्वानों को प्रेरित किया।
इसके अतिरिक्त वह संस्कृत के पण्डितों से भी सम्पर्ककर उनसे विचार-विमर्शकर निवेदन करते थे कि संस्कृत को आमजन की बोलचाल की भाषा बनाने के लिए व्याकरण पर अधिक बल न देते हुए संस्कृत सिखाने के लिए एक नयी और सरल पद्धति का निर्माण करना चाहिये।
श्री बाबा साहेब आपटे का जन्म 28 अगस्त, 1903 ई. यवतमाल (महाराष्ट्र) में हुआ था। अपने प्रारम्भिक जीवन में वह कुछ दिन घामण गाँव (महाराष्ट्र) में शिक्षक रहे, किन्तु पढ़ाते समय राष्ट्रवाद का पुट देते रहने तथा लोकमान्य तिलक की जयन्ती मनाने पर देशद्रोही करार दिए जाने के कारण उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था। सितम्बर, 1924 ई. में वह नागपुर आ गए और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने। 1927 ई. में वह प्रथम संघशिक्षा वर्ग में बौद्धिक विभाग के प्रमुख रहे। सन् 1930 ई॰ में सत्याग्रह-आन्दोलन में संघ-संस्थापक डा॰ केशवराव बळिराम हेडगेवार (1889-1940) की अनुपस्थिति में संघ-शाखाओं में सुचारू रूप से चलाने का दायित्व भली-भाँति पूरा किया। सन् 1931 में वह संघ के प्रथम प्रचारक होकर निकले। अगले दो वर्ष तक नागपुर और विदर्भ में प्रवास के बाद अन्य प्रांतों में भी जाने लगे। गाँव-गाँव पैदल घूमकर उन्होंने संघ-कार्य का विस्तार किया। इसी दौरान उद्यम मुद्रणालय, देव मुद्रणालय और आईडियल डेमोक्रेटिक कम्पनी के टाइपिस्ट रहे और ‘उद्यम’ (मासिक) में पत्र भी लिखने लगे। 1932 ई॰ में सभी नौकरियों से त्यागपत्र दे दिया और संघ के प्रति पूर्ण समर्पित हो गये। 1937-‘40 ई॰ तक सम्पूर्ण भारत में प्रवास किया। अगस्त, 1942 ई॰ में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’के दौरान बिहार का दौरा किया। 33 श्लोकोंवाले ‘भारतभक्तिस्तोत्र’की रचना की। चीन के क्रांतिकारी-इतिहास का गहन अध्ययन करके आधुनिक चीन के राष्ट्रपिता डा॰ सनयात सेन पर भी एक पुस्तक लिखी। संस्कृत-भाषा को प्रोत्साहन देने एवं उसका प्रचार-प्रसार करने के लिए अपने परिवार को तो छोड़ दिया, किन्तु सारे हिंदू-समाजरूपी परिवार को एक करने और उसमें आत्मीयता भरने की अलख जगाने लगे। 26 जुलाई, 1972 ई. को उनका निधन हो गया।
बाबा साहेब आपटे ने अनेक पुस्तकों की रचना की, जिसमें प्रमुख हैं-
- अपनी प्रार्थना’ (1973)
- ‘महाराष्ट्राचा स्मृतिकार’ (मराठी, 1997)
- ‘आमच्या राष्ट्रजीवनाची परंपरा : दशावतार कथेंतील राष्ट्रीयत्वाच्या परंपरेचा सुसूत्र इतिहास’ Warning(मराठी, हिंदी में ‘हमारे राष्ट्रजीवन की परम्परा)
- ‘परमपूजनीय डाक्टर हेडगेवार : संक्षिप्त चरित्र व विचारदर्शन’
- ‘डा. हेडगेवार’
- ‘पंजाबकेसरी दे.भ. लाला लाजपतराय’, इत्यादि